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मैं (1) / कन्हैया लाल सेठिया
Kavita Kosh से
कोनी मनैं
म्हारै बारै में
कोई बैम !
मैं समंदर री
एक बूंद
गिगनार रो
एक तारो
माटी रो एक कण,
हो साव भोळंगो
म्हारो बचपण
निसफिकर हो
जोबन
अबै बुढापै में
कोनी चाहीजै
कोई विसेषण
मनै संतोष
मैं जियो
एक
साधारण जीवण
अबै मैं कोनी अडीकै मरण !