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मैं / मधुप मोहता
Kavita Kosh से
मैं
पारदर्शी दृष्टि से
हर आवरण के पार
ओट में रखे हुए
प्रत्येक मिथ्या भ्रमजनक
अस्तित्व को छू,
ज्ञात करना चाहता हूं
सत्य क्या है ?
तुम्हें भी अधिकार है,
तुम टटोलो तहें मेरी
और पहचानो
कि मैं
बहता हुआ पानी नहीं हूं
महासागर हूं।