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मैं / मृत्युंजय कुमार सिंह
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मैं - एक दीया
आस्था औ' विश्वास का तेल
भावना की बाती
चेतना की आग
सबका मेल
जलाती है मेरे जीवन की शिखा;
फिर चुकता जाता है तेल
जलती जाती है बाती
धीमी पड़ती है शिखा
और शेष बचता हूँ
मैं - एक दीया।