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मैकदे से राबता मेरा कराया चाँद ने / प्रफुल्ल कुमार परवेज़

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मैकदे से राबता मेरा कराया चाँद ने
रंजो-ग़म में डूब जाने से बचाया चाँद ने

ज्ब हुए बादल घने ख़ुद ही बरस कर रह गये
ज़िन्दगी का फ़ल्सफ़ा हमको बताया चाँद ने

हर किसी की तीरगी को नूर दो हस्ब-ए-बिसात
ज़िन्दा रहने का सबब यह भी बताया चाँद ने

ज़ीस्त मिस्ल-ए-दर्द है तो मिस्ल-ए-चारा मैकदा
हम तो नादाँ थे हैं दाना बनाया चाँद ने

मेरी आँखोंकी नमी का जायज़ा ले कर मुझे
हँसते-हँसते थक गया इतना हँसाया चाँद ने

रात भर उसकी हमारी गुफ़्तगू होती रही
क्या बतायें आपको क्या-क्या सुनाया चाँद ने