Last modified on 20 नवम्बर 2008, at 20:34

मैटरनिटी वार्ड / राहुल राजेश

कराह नहीं
किलकारियों से मदहोश हैं दीवारें
चेहरों पर मायूसी का मंजर नहीं
आनंद का अतिरेक है
मौत से लड़ने की जद्दोजहद
ज़िन्दगी नज़्म बनकर उतर रही है
प्रसव-पीड़ाओं में

अभी-अभी आँख मटकाता
नर्म-नर्म हाथ-पाँव फैलाता
ज़मीं पर उतरेगा कोई बच्चा
और स्वागत में उसके
खिलखिला उठेंगे सैंकड़ों बच्चे

पूरा अस्पताल एक बार फिर
महक उठेगा अभी-अभी जन्मे
शिशु की ख़ुशबू से

मौत एक बार फिर थर्राएगी ज़िन्दगी से