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मैटरनिटी वार्ड / राहुल राजेश
Kavita Kosh से
कराह नहीं
किलकारियों से मदहोश हैं दीवारें
चेहरों पर मायूसी का मंजर नहीं
आनंद का अतिरेक है
मौत से लड़ने की जद्दोजहद
ज़िन्दगी नज़्म बनकर उतर रही है
प्रसव-पीड़ाओं में
अभी-अभी आँख मटकाता
नर्म-नर्म हाथ-पाँव फैलाता
ज़मीं पर उतरेगा कोई बच्चा
और स्वागत में उसके
खिलखिला उठेंगे सैंकड़ों बच्चे
पूरा अस्पताल एक बार फिर
महक उठेगा अभी-अभी जन्मे
शिशु की ख़ुशबू से
मौत एक बार फिर थर्राएगी ज़िन्दगी से