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मैट्रिक के छात्रों को विदाई / जगदीश जोशी / क्रान्ति कनाटे
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समुद्र की एक-एक लहर
किनारे की थोड़ी-थोड़ी रेत को
घसीटती जाती है ।
धुली हुई रेत का हरेक कण
सूरज की किरणों में चमकता भी है
और
पाँव को जलाता भी है ।
तुम्हारा आना और जाना
ऋणानुबन्ध !
फिर भी
तुम्हारे जाने से
कोई पुराना ज़ख़्म रह-रहकर
रिसने लगता है
पर कौन जाने क्यों
चीख़ नहीं निकलती ।
मूल गुजराती से अनुवाद : क्रान्ति कनाटे