जाहि लेल कठिन तप कयलहुँ
घामक मोती रोज चुएलहुँ
भेंटल नहि ओ भेल बेकार
की सखि प्रियतम
नहि रोजगार।
जँ आबय भरपेट खुआबय
बच्चा बूढा सबकें भाबय
मुदा न भेंटैत अछि ओ रोज
की सखि घरनी
नहि सखि भोज।
घरकें घर सन वैह बनाबय
चोर चुहारक धूल चटाबय
मुस्तैदीसँ सदिखन ठाढ़
की सखि रक्षक
नहि केबार।
बात बातमे दै छथि झीक
हुनकर गारि लगै अछि नीक
जगमे हुनका सन नहि कोई
की सखि साजन
नहि बहिनोइ।