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मैदाने जंग में मरना है / रणवीर सिंह दहिया

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झलकारी के सामने अब एक ही रास्ता बचा था कि गोरों का ध्ध्यान रानी से हटाया जाये और लक्ष्मी बाई को बचाया जाये। वह एकदम छावनी जा पहुंची। घोड़े की लगाम खींची। तेज आवाज सुनकर गोरे चौंक गये। पूछा- कौन हाय? झलकारी ने बेखौफ जवाब दिया था- रानी। सैनिक बोला- कौन रानी? झलकारी फिर बोली-झांसी की रानी लक्ष्मी बाई। रोज को खबर दी गई। वह आया और पूछा- कौन हो टुम। कहा- झंासी की रानी । सब कैम्प में आ गये। फिरंगी दुविधा में थे। कैसे पता लगायें वास्तव मैं यह औरत रानी लक्ष्मी बाई है। घर का भेदी लंका ढाये। दुल्हाजु अंग्रेजों का भेदिया था। उसे बुलाया गया। यह वही दुल्हाजु था जिसने ओरछा फाटक खोलकर अंग्रेजीं सेना को भीतर आने का अवसर दिया था। वह बोला सर यह रानी नहीं है। यह झलकारी कोरिन है। झलकारी दुल्हाजु पर झपटी। रोज ने कहा- तुम्हे गोली मार देगा। झलकारी फिर गरजी- मार देय गोली। मोखौं मौत से डर नई लागै। अंग्रेज उसकी निडरता से प्रभावित होते हैं। और उसे छोड़ देते हैं। उसे बचने की खुशी न थी। वह याद करती है पिछला वक्त। क्या बताया भलाः

मैदाने जंग मंे मरना है, फिरंगी से नहीं डरना है
यो वायदा पूरा करना है, कहती रानी लक्ष्मी बाई॥
तीन बरस ना जेवर पहरे अपणा प्रण निभाया
रानी तै बोली गहने पहरूं यो समों लडण का आया
रानी बोली गहने पहरो, वा बोली रानी जी कहरो
नहीं मेरे पै गहना रहरो, बछिया का जुर्माना चुकाई॥
शाम दाम दण्ड भेद के दम सौचे यो राज कमाया
देश बी बंट्या जात धर्म पै फिरंगी नै फायदा ठाया
घर का भेदी यो लंका ढावै, म्हारे राज उड़ै पहोंचावै
फिंरगी आपस मैं लड़वावै, म्हारी इसनै रेल बनाई॥
दुख इतना दिया इननै कसर बाकी रही कोन्या
भोली जनता जान गई फिरंगी की नीत सही कोन्या
बड़ा जटिल रूप सै जंग का, दुश्मन पाया दुल्हाजू भाई॥
उतार-चढ़ाव आये देश मैं जन क्रान्ति का माहौल था
बोली फिरंगी सुणकै म्हारी होग्या डामा डोल था
यो बरोने आला रणबीर, जो जंग की खीचैं तस्वीर
झलकारी बनी रणधीर, जबान की घणी पक्की पाई॥