मैदान के ऊपर आकाश की ओर
उड़ान भरी है एक चील ने
ऊपर और ऊपर उड़ती वह
क्षितिज के छिप गई है उस पार
प्रकृति-माँ ने प्रदान किए हैं उसे
दो सशक्त जीवन्त पँख
लेकिन मैं — धरती का सम्राट
धूल और पसीने में बँधा हूँ सिर्फ़ उसी से !...
(1835)
मैदान के ऊपर आकाश की ओर
उड़ान भरी है एक चील ने
ऊपर और ऊपर उड़ती वह
क्षितिज के छिप गई है उस पार
प्रकृति-माँ ने प्रदान किए हैं उसे
दो सशक्त जीवन्त पँख
लेकिन मैं — धरती का सम्राट
धूल और पसीने में बँधा हूँ सिर्फ़ उसी से !...
(1835)