Last modified on 19 जुलाई 2016, at 09:43

मैना की यात्रा / प्रेम प्रगास / धरनीदास

चौपाई:-

चारि पहर दिन पौंख उडाई। सविता उगो अस्त चलि आई।।
निराधार मैना अकुलाई। अब निज मृत्यु आय नियराई।।
पुनि पुनि सुमिरो सो कर्त्तारा। जिन पानी सों पिंड सँवारा।।
प्रभु जान्यो मैना मम आशा। दीनवंधु महिमा परकाशा।।
वृक्ष एक दीरघ अति भारी। वहा जात देखा तंह सारी।।

विश्राम:-

दृष्टि परी वहि वक्षपर, गौ मैना तहि ठाम।
चारि पहर निशि खंडचउ, जपत जगपति नाम।।45।।