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मैनूँ दर्द अवल्लड़े दी पीड़ / बुल्ले शाह

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मैनूँ दर्द अवल्लड़े दी पीड़।
सहीओ! दर्द अवल्लड़े दी पीड़।

मैनूँ छड्ड गए आप लद्द गए,
मैं विच्च की तकसीर।

रातीं नींद न दिन सुख सुत्ती,
अक्खीं पलटिआ नीर।

तोपाँ ते तलवाराँ कोलों,
इशक दे तिखड़े तीर।

इशके जेड ना ज़ालम कोई,
एह ज़हमत<ref>तकलीफ</ref> बे-पीर।

इक पल साएत<ref>घड़ी</ref> आराम ना आवे,
बुरी ब्रिहों दी पीड़।

बुल्ला सहु जे करे इनाएत,
दुख होवण तगयीर<ref>नाश</ref>।

शब्दार्थ
<references/>