भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मैयत जो मेरी निकले तुम काँधा लगा देना / पल्लवी मिश्रा
Kavita Kosh से
मैयत जो मेरी निकले तुम काँधा लगा देना,
मेरी वफाओं का मुझको बस इतना सिला देना।
खता है गर मुहब्बत और जफा है इश्क की बातें,
करेंगे बारहा ये जुर्म, जो चाहे सजा देना।
मैख़ाने में घट जाये गर मेरे हिस्से का पैमाना,
साकी जाम में मेरे तुम पानी मिला देना।
इरादा खुदकशी का जो, तेरे दिल में भी आता हो,
नहीं आसान होता है, यूँ ही हस्ता मिटा देना।
हम भटके मुसाफिर हैं कि हैं भूले हुए राही,
जन्नत के नहीं काबिल, जहन्नुम का पता देना।
सुना है मुस्कुराने से उम्र दराज होती है,
गमे दिल जब परेशां हो, तुम आकर हँसा देना।
बड़ी मुश्किल से हैं सजते, ये अल्फाजों के गुलदस्ते,
न हो मायूस ये माली, करीने से सजा देना।