राग रामकली
मैया, कबहिं बढ़ैगी चोटी
किती बार मोहि दूध पियत भइ, यह अजहूँ है छोटी ॥
तू जो कहति बल की बेनी ज्यौं, ह्वै है लाँबी-मोटी ।
काढ़त-गुहत-न्हवावत जैहै नागिनि-सी भुइँ लोटी ॥
काँचौ दूध पियावति पचि-पचि, देति न माखन-रोटी ।
सूरज चिरजीवौ दोउ भैया, हरि-हलधर की जोटी ॥
भावार्थ :-- (श्यामसुन्दर कहते हैं-) `मैया ! मेरी चोटी कब बढ़ेगी ? मुझे दूध पीते कितनी देर हो गयी पर यह तो अब भी छोटी ही है । तू जो यह कहती है कि दाऊ भैया की चोटी के समान यह भी लम्बी और मोटी हो जायगी और कंघी करते, गूँथते तथा स्नान कराते समय सर्पिणी के समान भूमि तक लोटने (लटकने) लगेगी (वह तेरी बात ठीक नहीं जान पड़ती)। तू मुझे बार-बार परिश्रम करके कच्चा (धारोष्ण) दूध पिलाती है, मक्खन-रोटी नहीं देती ।'(यह कहकर मोहन मचल रहे हैं ।) सूरदास जी कहते हैं कि बलराम घनश्याम की जोड़ी अनुपम है, ये दोनों भाई चिरजीवी हों ।