भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मैया री मोहिं माखन भावै / सूरदास

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैया री मोहिं माखन भावै।
मधु मेवा पकवान मिठा मोंहि नाहिं रुचि आवे॥
ब्रज जुवती इक पाछें ठाड़ी सुनति स्याम की बातें।
मन-मन कहति कबहुं अपने घर देखौ माखन खातें॥
बैठें जाय मथनियां के ढिंग मैं तब रहौं छिपानी।
सूरदास प्रभु अन्तरजामी ग्वालि मनहिं की जानी॥