भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मैरिलिन मनरो के लिए प्रार्थना / अरनेस्तो कार्देनाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

प्रभु ! इस कन्या को शरण दो
जिसे पूरी दुनिया मैरिलिन मनरो के नाम से जानती है
हालाँकि यह इसका नाम नहीं था
(पर तुम तो इसका असली नाम जानते हो,
इस अनाथ लड़की का नाम
जिसके साथ नौ साल की उम्र में बलात्कार किया गया,
जो सोलह की थे और सेल्स-गर्ल थी एक दुकान में
जब इसने आत्महत्या करने की कोशिश की)
जो अब तुम्हारे सम्मुख जा रही है मेकअप के बिना
बिना अपने प्रेस-एजेंट के
न अपने चित्रों के साथ
न अपने चाहने वालों को हस्ताक्षर बाँटती दाँए-बाँए
बिल्कुल अकेली
जैसे सुदूर अनन्त के अँधियारे का रुख़ करता अन्तरिक्ष-यात्री
जब यह लड़की थी, इसने सपना देखा था कि
यह नंगी खड़ी है गिरजे में
(‘टाइम’ मैगज़ीन के मुताबिक़)
और इसके सामने बिछी हुई है अपार भीड़
सिर धरती पर नवाए,
जो इसे पंजों के बल बढ़ना है उन तमाम सिरों को बचाते हुए
तुम हमारे सपनों को
किसी भी मनोचिकित्सक से बेहतर जानते हो, प्रभु
गिरजा, घर या गुफ़ा --
ये सब गर्भ की निरापद सुरक्षा के प्रतीक हैं
मगर इससे भी कुछ ज़्यादा ...
झुके हुए सिर तो प्रशंसक हैं, इतना तो साफ़ है
(स्क्रीन पर केन्द्रित रोशनी के शहतीर के नीचे
हाल के अँधेरे में दर्शकों के सिरों का हुजूम)
लेकिन वह मन्दिर ट्वेंटिएथ सेंचुरी फ़ाक्स का स्टूडियो नहीं
वह मन्दिर -- संगमरमर और सोने से बना मन्दिर --
उसकी देह का है
जिसमें आदमी का बेटा हाथ में कोड़ा लिये खड़ा है
ट्वेंटिएथ सेंचुरी फ़ाक्स के सूदख़ोरों को खदेड़ता हुआ
जिन्होंने तुम्हारे उपासना-गृह को चोरों का अड्डा बना दिया था ।
प्रभु, इस दुनिया में
जो रेडियो--धर्मिता और पाप,
दोनों से समान रूप में दूषित है
निश्चय ही तुम इस सेल्स-गर्ल को दोषी नहीं ठहराओगे
जो (आम बिक्री-सहायिकाओं की तरह)
फ़िल्मी सितारा बनने का सपना देखती थी ।
और इसका सपना ‘सच्चाई’ बन गया (टेक्निकलर सच्चाई)
इसने बस यही किया है कि हमारी दी हुई पटकथा पर चलती रही
जो दरअसल हमारी अपनी ज़िन्दगियों की थी, लेकिन अर्थहीन थी,
इसे क्षमा करो प्रभु, और साथ-साथ हमें भी,
हमारी इस बीसवीं सदी के लिए,
और इस विराट सुपर-प्रोडक्शन के लिए
जिसके निर्माण में हम सब ने योग दिया ।
यह प्यार की भूखी थी और हमने इसे
नसों को शान्त करने वाली दवाइयाँ पेश कीं ।
हम सन्त नहीं हैं -- इस ज्ञान से उपजी उदासी के लिए
उन्होंने इसे मनोचिकित्सा का सुझाव दिया ।
याद करो, प्रभु, कैमरे के प्रति इसका बढ़ता हुआ आतंक
और मेकअप के प्रति इसकी नफ़रत (फिर भी हर दृश्य के लिए
नये सिरे से मेकअप करवाने पर इसका आग्रह ।)
और किस तरह यह आतंक बढ़ता गया
और किस तरह बढ़ता गया स्टूडियो पहुँचने में इसका विलम्ब ।
दुकान में काम करने वाली आम सेल्स-गर्ल की तरह
यह फ़िल्मी सितारा बनने का सपना देखती थी
और इसकी ज़िन्दगी उस सपने जितनी ही अवास्तविक थी
जिसे मनोचिकित्सक एक नज़र देख कर
फ़ाइल-बन्द कर देता है ।
इसके प्रेम-सम्बन्ध आँखें मूँद कर दिए गए चुम्बन थे
जो आँखें खुलने पर
फ़िल्मी बत्तियों के नीचे खेले गए नाटक सरीखे जान पड़ते हैं ।
लेकिन बत्तियाँ तो बुझ चुकी हैं
और कमरे की दो दीवारें (वह एक सेट था)
हटाई जा रही हैं
और इस बीच निर्देशक हाथ में नोट-बुक लिए
दृश्य को सही--सलामत फ़िल्माने के बाद
जा रहा है किसी दूसरी तरफ़ ।
या फिर इसके प्रेम-सम्बन्ध नौका-विहार जैसे थे,
एक चुम्बन सिंगापुर में,
एक नाच रियो में, एक जश्न विंडसर के
राजा--रानी के प्रासाद में --
जो देखा जा रहा हो किसी सस्ते-से फ़्लैट की मनहूस तड़क-भड़क में ।
आख़िरी चुम्बन से पहले ही ख़त्म हो गई फ़िल्म ।
उन्होंने इसे बिस्तर पर मृत पाया फ़ोन पर हाथ रखे ।
और जासूसों की रत्ती-भर इमकान नहीं था
कि यह किसे फ़ोन करने वाली थी ।
मानो किसी ने एकमात्र मित्रता-भरी आवाज़ को फ़ोन मिलाया था
और सुनी थी उत्तर में
पहले से टेप की गयी एक आवाज़ -- ‘ग़लत नम्बर,’
या जैसे गुण्डों के हाथों घायल हो कर कोई व्यक्ति
बढ़ाता हो हाथ उस फ़ोन की तरफ़
जिसकी तार पहले की काट दी गई हो ।
प्रभु, जो भी वह रहा हो
जिसे यह फ़ोन करने जा रही थी
मगर कर नहीं पाई (शायद कोई था भी नहीं
या शायद कोई ऐसा नाम
जो लास ऐंजिलीज़ की फ़ोन-निर्देशिका में नहीं है)
प्रभु, तुम दे दो इस फ़ोन का जवाब ।