मैहला-केलि / अवतार एनगिल
मेहलां केलि1
दालचीनी पर्वतों तले
रावी प्रवाह से परे
जोड़ गांठती खड्डों में
एक तलहट्टी---मैहला
मक्के के 'घाड़े'---जैसे जापानी बालाएं
धूपीले 'केमीनो' पहन
रचती हों
अनगिन लीलाएं
नील-सलेट घरों गिर्द
मैहला-घाटी अनंत स्वरों--गहरा नीर ले
तलहट्टी के पत्थरों तक
उतर जाती है
नीली छतों वाले लकड़ी के घर के
दुमंजिलों के झरोखों से
मिट्टी रा2 मोह
गुनगुनी धूप की टूटती किरणों-रचे
लिखणू3 देखता है
तृप्त पशु
सांझ के गहराते लाक्षा रंगों में
जापानी-खिलोनों से लगते हैं
भरते हैं
धवल काग---आख़िरी उड़ान
पर्वतों कटे अम्बर में
और तलहटी के आदि पत्थरों से
लांघते पानी के
अनुभव बूझते हैं
पत्थरों तराशा सृजन
स्थूल स्वरूपों में
शीत-शरद भोगता है
कार्तिक के पात
खड़बड़ाहट की थकावट तान
धरती पर जा लेटते हैं मक्की के डंठलों के धूप रंगे 'कैमीनो'
ठण्ड भीगी हवा के
शरद सहेजते हैं।
1. चम्बा से लगभव दस किलोमीटर दूर, भरमौर की ओर, रावी किनारे बसा गांव।
2. रा- चम्याली बोली का 'का'
3. लिखणु----चम्बा के मांगलिक अवसरों पर की गई अलपना अथवा रंगोली ।