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मै और तुम / निमिषा सिंघल
Kavita Kosh से
अतीत के फफोले,
मरहम तुम।
अध्याय दुख के
सहारा तुम।
तपस्या उम्रभर की,
वरदान तुम।
बैचेनिया इस दिल की,
राहत तुम।
दिल में फैली स्याही,
लेखनी तुम।
अक्षुष्ण मौन इस दिल में,
धड़कनों का कोलाहल तुम।
रुदन धड़कनों का,
मुस्कुराहट तुम।
लौह भस्म-सा ये दिल,
चुम्बक तुम।
पिंजर बद्घ अनुराग
उन्माद तुम।
बहती धारा-सी में,
सागर तुम।