सावित्री अपने मन में क्या विचार करती है-
मैं चरण गहुंगी थारे लाज राख मेरे प्यारे।टेक
दिन रात तुझे रटती मैं
ना दुनियां तै मिटती मैं
म्हारे रस्ते बन्द हुऐ सारे। लाज राख मेरे प्यारे।
मेरै इसी आवती मन मैं
इस गहरे बिया बण मैं
डरते हैं प्राण हमारे। लाज राख मेरे प्यारे।
दिन रात तरसना तेरी
हे प्रभू लाज राखियो मेरी
हम बीर मर्द हुए न्यारे-लाज राख मेरे प्यारे।
अफसोस मुझे आता है
कथ मेहर सिंह गाता है
म्हारे मरणे के दिन आ रह्ये। लाज राख मेरे प्यारे।