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मै निर्धन-कंगाल, तूं राजा रायसिंह की जाई / ललित कुमार

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मै निर्धन-कंगाल तूं राजा, रायसिंह की जाई,
इस टुट्टी छान मै करूँ गुजारा, क्यूँ महल छोडकै आई || टेक ||

कित कंगले संग होली बीना, तनै सखी देंगी ताने,
तेरे बणखंड के म्हा पैर फुटज्या, लाग-लाग कै फाने,
उड़ै पीण-नहाण नै एक तला, आड़ै बण रे अलग जनाने,
मेरा अन्न-वस्त्र का टोटा सै, तेरै भरे न्यारे-न्यारे खान्ने,
थारै धनमाया के भरे खजाने, मेरै धोरै ना एक पाई ||

उड़ै बियाबान मै दुःख पाज्या, ना सुख महला आळे,
तूं राजा की राजकुमारी, मेरै संग झाडैगी जाळे,
तेरी दासी-बांदी करैं टहल, महल मै नौकर रहवै रुखाले,
टोटा-खोटा हो बुरा जगत मै, मेरे बख्त टलै ना टाले.
तेरे पिता नै कर दिए चाले, निर्धन गेल्या ब्याही ||

सोने की अठमासी बीना, बणखंड के म्हा जरया करैगी,
आड़ै छत्तीस भोजन मिलै खाण नै, बण मै भूखी मरया करैगी,
ओड़ै शेर-बघेरे भालू बोलै, बियाबान मै डरया करैगी,
दुःख पाज्या तेरी निर्मल काया, जब शीश लाकड़ी धरया करैगी,
तूं नैनां नीर भरया करैगी, तेरी कोए ना करैं सुणवाई ||

बड़े-बड़ेरे कहया करैं सै, ना टोटा किसे का मीत बीना,
हिणै कै घर सुथरी बहूँ, कोए खोटी धरले नीत बीना,
आग-पाणी का ना मेल बताया, तूं कितै ल्याई या रीत बीना,
गाम बुवाणी चाली आई, करकै गुर्जर तै प्रीत बीना,
कहरया तनै ललित बीना, मत लुवावै चाँद कै स्याही ||