भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मै बूझू सू तनै परदेसी कित घर गाम तुम्हारा / मेहर सिंह

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वार्ता- जब सावित्री चलते चलते एक जंगल में पहुंच जाती है तो एक आदमी उसे जंगल में लकड़ी काटता हुआ मिल जाता है। वह उसके पास जाती है और क्या कहती है-

हाथ जोड़ कै अर्ज करुं सुं सुणले बचन हमारा
मैं बूझूं सूं तनै परदेसी कित घर गाम तुम्हारा।

कित की जन्म भूम सै तेरी के धन्धा कर रहा सै
घबरा कै हुया दूर खड़या क्यूं ज्यादा डर र्ह्या सै
बुरा लबेश बदन तेरे पै किस तरियां फिर र्ह्या सै
के मरगी तेरी जननी भाई के बाप तेरा मर र्ह्या सै
के पड़र्ही सै बखा तेरे पै तूं किसनै करा कुपारा।

हम तम तै बतलाणा चाहवै क्यूं सिर नीचे ने गो रह्या सै
खड्या उदास बोलता कोन्या के मरहम चीज खो रह्या सै
शरीर तेरे पै खून नहीं दिन थोड़े का छोरा सै
पंजर सूख होया तेरा जी लिकड़ण नै हो र्ह्या सै
के तै खाया किसै बुरे बोल नै ना अन्न का र्ह्या निसारा।

कूण गूनीम बणया सै तेरा किस नै ताह राख्या सै
किसै साहुकार ने काढ़ दिया के कर्जा खा राख्या सै
हम को हाल बताणा चाहिए क्यूं दुःख ठा राख्या सै
एक बात तूं और बता कंवारा सै अक ब्याह राख्या सै
जै मर रही हो बीर आप की तो शादी करो दुबारा।

बखत पड़े पै आदम देह ने दिल समझाणा चाहिए
जो कोए प्रेम करै आगे तैं हंस बतलाणा चाहिए
चोरी जारी जुआ जामणी ना धिंगताणा चाहिए
जो उस मालिक ने धन्धा दे दिया कर कै खाणा चाहिए
मेहर सिंह कित फिरै भोंकता इस हल बिन नहीं गुजारा।