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मोंछ / चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’

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1
काटू हे पृथ्वि! विकल हृउश्क
आधार बनू, उद्धार करू।
पददलित आइ अछि वीर पुरूष
किछुओ तँऽ आब विचार करू॥
2
हमहीं छी पुरूषक पौरूष आ
खत्ता में चित्त खसल छी हम।
नवयुगक सभ्य-लोकनिक पालाँ-
पड़ि, पक्ङक बीच फँसल छी हम॥
3
पहिलुक युग मे शत्रुक आगाँ
नरपुग्ङव जे गरजैत छला।
बस तनिकर कारण हमहीं छी
हमरे बल यश अरजैत छला॥
4
एँठैत छला हमरा रहि रहि
वीरत्वक परिचय दैत छला।
नहि नवका सनक फनैत छला,
हमरे बल मारि, मरैत छला॥
5
हम तँऽ छी वैह, मुदा हमही,
दुर्गति द्वारेँ छी तड़पि रहल।
नव युगक सभ्य लोकनिक नामें
छी कानि रहल, छी कलपि रहल॥
6
बहुतो ऊपर सँ कपचि कपाचि,
अधिकार हमर अछि छीनि रहल।
बहुता हमरे संहार करक हित,
‘‘सेफ्टी रेजर’’ कीनि रहल॥
7
बहुतो आधाधड़ काटि हमर,
अपने फैसन मे चूर बनल।
हमरा विपत्ति बड़ भारी अछि,
हम मसोम्मात मे जाइ गनल॥
8
ई दोष बूझू भगवानक थिक
अथवा चुतरानन छथि दोषी।
ओसृष्टि बीच करइ छथि भ्रम,
नहिं सृष्टि आब अछि सन्तोषी॥
9
हुनका सँऽ जा करवाउ शपथ,
नहि जग मे हमर प्रचार करू।
फाटू हे पृथ्वि! विकल हृदयक,
आधर बनू, उद्धार करू॥
10
हम सोड़ह वर्षक बाद अछि
अधिकार अपन जौं जमबइ छी।
तँ आजुक युग मे अपनहिसँ
हम अपन प्रतिष्ठा गमबइ छी॥
11
नहीं रहल प्रयोगजन आब हमर
योजन भरि दूर रहइ अछि जग।
पहिने सँ बुझि आगमन हमर
‘‘छी-छी दुर-दुर’’ अछि जग॥
12
लाजेँ ककरो लग नहिं बाजी
बाबाजी लग बैसी जाकै।
हम तुम्मा-चुट्टा-खँडुकी बल
निर्वाह करी जग नहिं ताकै॥
13
हमरा बिनु ‘‘सोहल सुथनी’’ सन
स्वीकार करै मुखड़ा राखब।
बसुधे! अपना दुःखक कारण
ककरा लग जा कै हम भाखब॥
14
उठि जाओ हमर जगसँ सत्ता
बा सभयतैक संहार करू।
फाटू हे पृथ्वि! विकल हृदयक
आधार बनू, उद्धार करू॥