भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मोगरा / कुँअर रवीन्द्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मेरे बाग़ीचे में
गुलाबों ,डेहलियों,पपियों
और ढेर सारे ख़ूबसूरत फूलों के बीच

एक कोने में मोगरे का पौधा
लड़ रहा है वर्षों से
मेरे बाग़ीचे में गंधों-सुगंधों से
अपनी देसी महक लिए

उसे खाद की, दवाई की ज़रूरत नहीं है
नहीं चाहता गुलदस्तों में सजना

रसिकों की कलाई में
और
नव-यौवनाओं के जूड़े से ही सन्तुष्ट है

अपना देसीपन लिए
मोगरा