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मोटर / श्रीनाथ सिंह

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आज बन गया हूँ मैं मोटर।
हटो नहीं खाओगे ठोकर।
पों पों पों पों भागो यारों।
मेरा रस्ता त्यागो यारों।
दूर बहुत जाना है मुझको।
फिर वापस आना है मुझको।
काम दौड़ना सरसर मेरा।
दिन भर करता रहता फेरा।
जब आयगी रात अँधेरी।
लखना भारी ऑंखें मेरी।
जिधर जिधर से निकलूंगा मैं।
दिवस रात का कर दूंगा मैं।