Last modified on 25 जुलाई 2008, at 21:42

मोड़ तीखे हो गए डरने लगे हैं रास्ते / विनय कुमार

मोड़ तीखे हो गए डरने लगे हैं रास्ते।
खौफ़ के मारे यहाँ मरने लगे हैं रास्ते।

तय हुआ मुश्किल सफ़र तो चोटियों से कूदना
बात क्या है ख़ुदकुशी करने लगे हैं रास्ते।

अब करें हम तुम नयी राहें बनाने की पहल
राहगीरों के क़दम चरने लगे हैं रास्ते।

खोल दी जो राहबर की गांठ ज़िंदा राह ने
मुंह खुला है गांठ का झरने लगे हैं रास्ते।

पाँव वाले क्या करेंगे सोचता ही कौन है
लोग अपनी जेब में भरने लगे हैं रास्ते।

शहर में थे औपचारिक, गाँव पहुँचे तो सहज
जंगलो में चौकड़ी भरने लगे हैं रास्ते।