भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मोतिया बरन हम सुन्नर हो बाबा / अंगिका लोकगीत

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

मोतिया बरन<ref>वर्ण; रंग</ref> हम सुन्नर हो बाबा, फुलबा ऐसन सुकुमार हे।
चनमा ऐसन बर खोजिहऽ हो बाबा, तब मोरा होयत बिआह हे॥1॥
सहर सहर हम खोजलौं गे बेटी, खोजलौं सगर<ref>संपूर्ण</ref> संसार हे।
चनमा ऐसन बर नहिं भेंटल गे बेटी, अबे तहुँ रहल कुमार हे॥2॥
तोहरो नबरँग फुलबरिया हो बाबा, फुलबा जे फूलल गुलाब हे।
तहि तर<ref>उसके नीचे</ref> ठाढ़ भेल सुन्नर दुलहा, फुलबा लोढै मुसुकाइ हे॥3॥
केकरहुँ<ref>किसके</ref> तोहें उलरुआ<ref>‘दुलरुआ’ का अनुरणानात्मक प्रयोग</ref> दुलरुआ, केकरहुँ परान के अधार हे।
कौने बनिजबा चलल बर सुन्नर, फलबा तोरै मुसकाइ हे॥4॥
ऐतना बचन जब सुनलन सीता, बाबा सेॅ करै कलजोरि<ref>हाथ जोड़ना; विनय करना; प्रणाम करना</ref> हे।
जैसनबर बाबा सामर खोजल, से बर ठाढ़ फुलबारि हे॥5॥
मुँहबा त लागै बाबा चनमा के जोती, अँखिया लागै रतनारि हे।
फुलबा तोरै मुसकाइ हे।
हुनकहु<ref>उन्हीं को</ref> तिलक चढ़ाबऽ हो बाबा, हुनके सेॅ होयत बिआह हे॥6॥

शब्दार्थ
<references/>