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मोना तुम मरीं क्यों? / असंगघोष
Kavita Kosh से
ओ कजरवारा की मोना!
तुम मरीं
भूख से
बुखार से
कुत्ता काटने से
उपेक्षा से
या अपनी अभिरक्षा से
वंचित हो मरीं,
व्यथित हो मरीं
क्या तुम नहीं जानतीं?
गरीब-गुरबा मरते हैं
झुलसती गर्मियों में लू से
कड़कड़ाती ठण्ड में शीत से
बरसात में बाढ़ से
गाज गिरने से
मौका लगे तो
दूसरों की लगाई आग से
इलाज के अभाव में
बीमारी से, पर
खाने को जब तक होती हैं
हवा, घास, भीख या रहम
तब तक गरीब नहीं मरते
कभी भूख से
ओ मोना!
कजरवारा में तो
दावों-प्रतिदावों के बीच
यह सब था
फिर तुम मरीं क्यों?
शासन नहीं कहता
तुम्हारी लाश उखाड़े बिना
बिना चीरफाड़ किए
तुम्हें भूख ने मारा
बुखार ने मारा
अभाव ने मारा, या
मौत ने मारा
ओ मोना!
तुम मरीं क्यों?