मोबाइल पर उस लड़की की सुबह / वीरेन डंगवाल
सुबह-सवेरे
मुंह भी मैला
फिर भी बोले
चली जा रही
वह लड़की मोबाइल पर
रह-रह
चिहुंक-चिहुंक जाती है
कुछ नई-नई-सी विद्या पढ़ने को
दूर शहर से आकर रहने वाली
लड़कियों के लिए
एक घर में बने निजी छात्रावास की बालकनी है यह
नीचे सड़क पर
घर वापस लौट रहे भोर के बूढ़े अधेड़ सैलानी
परिंदे अपनी कारोबारी उड़ानों पर जा चुके
सत्र शुरू हो चुका
बादलों-भरी सुबह है ठण्डी-ठण्डी
ताजा चेहरों वाले बच्चे निकल चले स्कूलों को
उनकी गहमागहमी उनके रूदन-हास से
फिर से प्रमुदित-स्फूर्त हुए वे शहरी बन्दर और कुत्ते
छुट्टी भर थे जो अलसाये
मार कुदक्का लम्बी टांगों वाली
हरी-हरी घासाहारिन तक ने
उन ही का अभिनन्दन किया
इस सबसे बेखबर किंतु वह
उद्विग्न हाव-भाव बोले जाती है
कोई बात जरूरी होगी अथवा
बात जरूरी नहीं भी हो सकती है