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मोबाइल से पानी / प्रभुदयाल श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
मोबाइल का बटन दबा तो,
लगा बरसने पानी।
धरती पर आकर पानी ने,
मस्ती की मनमानी।
चाल बढ़ी जब मोबाइल पर,
लगा झराझर झरने।
नदी ताल पोखर झरने सब,
लगे लबालब भरने।
और तेज फिर और तेज से,
चाल बढ़ाई जैसे।
आसमान से लगे बरसने,
जैसे तड़-तड़ पैसे।
किंतु अचानक मोबाइल का,
बटन हाथ से छूटा।
झर झर-झर झरते पानी का,
तुरत-फुरत क्रम टूटा।
नदी ताल पोखर झरनों से,
जल फिर वापस आया।
दौड़ लगाकर ऊपर भागा,
बादल बीच समाया।
बड़े ग़ज़ब के मोबाइल हैं,
कैसे अजब तमाशे।
जब चाहे पानी बरसा दें,
जब चाहे रुकवा दें।