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मोबाइल / स्वरांगी साने
Kavita Kosh से
कहीं से मिला तुम्हारा फ़ोन नम्बर
पर बात नहीं की तुमसे
और
सूरज का ही तकिया बना सो गई
सिरहाने रखे सूरज को
कभी भी टाँका जा सकता था आसमान में
शुरू किया जा सकता था दिन
और चाहे जब तुमसे बात भी
की जा सकती थी
पर दोनों ही काम नहीं हुए
हिम्मत ही नहीं हुई
तुम्हारा नम्बर मिलाने
या
सूरज से दो-चार होने की भी।