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मोम न, पत्थर बनऽ / सतीश मिश्रा
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कपूर के जे हे कदर तुतिया के गाँव में
पायल तूँ बाँध देख लऽ कुतिया के पाँव में
हाथ मत लफार दऽ खोता के फर समझ
डउँघी के पोर-पोर पर बिढ़नी हे दाँव में
सितार के सम्हार तूँ सले-सले सिधार जा
सुनत इहाँ के भैरवी, ई काँव-काँव में
मत कहऽ कि डूब गेल हे सुरुज, चलूँ
बंसी तोरे न बेध दे इ्र चल-चलाँव में
बनऽ परास, तार तूँ, चाहे बनऽ बबूल
चन्नन कहाँ कबूल ई जंगल के छाँव में
जिनगी जिएला मोम न, पत्थर बनऽ ‘सतीश’
दू पहर गुजर चुकल दरकल ढलाँव में।