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मोय ब्रज बिसरत नैया / बुन्देली

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

मोय ब्रज बिसरत नैयां,
सखी री मोय तो ब्रज बिसरत नैयां।।
सोने सरूपे की बनी द्वारिका,
गोकुल जैसी छवि नइयां।
मोय सखी...
उज्जवल जल जमुना की धारा,
बाकी भांति जल नैयां।
मोय सखी...
जो सुख कहियत मात जशोदा,
सो सुख सपने नैयां।
मोय सखी...