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मोरे पिछवरवा चन्दन गाछ आवरो से चन्दन हो

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

मोरे पिछवरवा चन्दन गाछ अवरो से चन्दन हो
रामा सुघर बडइया मारे छेवर लालन जी के पालन हो॥
रामा के गढउ खडउवा लालन जी के पालन हो,
रामा जसुमती ठाढ़ी झुलावैं लालन जी के पालन हो॥
झूलहु ए लाल झूलहु अवरो से झूलहु हो
रामा जमुना से जल भरि लाईं त झुलवा झुलाइब हो॥
जमुना पहुँच न पावों घडिलवौ ना भरिलिउं हो
रामा पिछवाँ उलटि जो मैं चितवौं पहल मुरली बाजल हो॥
रान परोसिन मैया मोरी अवरो बहिन मोरी हो
बहिनि छवहि दिना के भइने लाल त मुरली बजावल हो॥
चुप रहु जसुमति चुप रहु दुसमन जनि सुनै हो
बहिनी ईहैं त कंस के मारिहैं औ गोकुला बसैहैं हो॥