भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मोर्चे पर विदागीत / विहाग वैभव

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

उसके होंठ चूमना छोड़ते हुए
उसके चेहरे को भर लिया अँजुरियों में
और उसकी आँखों को पीते हुए मैंने कहा
मैं मिलूँगा तुमसे
तुम मुझे भूल मत जाना
दिन, महीने, साल लाँघकर
आऊँगा एक रोज़ अचानक
तुम्हें गोदी में उठा लूँगा
तब तुम्हारा चेहरा यक़ीनन
किसी पहाड़ी फूल-सा ताज़ा और चमकदार हो जाएगा

वह मुझे पनियाई आँख से देखती रही बस
जैसे किसी को आख़िरी बार देखा जाता है

मैंने उसे अपनी देह से छुड़ाते हुए सच कहा –
मैं जा रहा हूँ उस युद्ध में
जिसकी घोषणा किसी मौसम ने नहीं की
जिसके बारे में कोई पीढ़ी नही सुनाएगी कहानियाँ
जिसकी वीरता के क़िस्से सिर्फ़ शहीद हुए सिपाही कहेंगें और सुनेंगें

यह युद्ध मेरे और मेरे राजा के बीच है
मेरा उन्मादी राजा
दुनिया की हर ख़ूबसूरत चीज़ को
नेस्तनाबूद कर देने की योजनाओं में व्यस्त है
हर प्रकार की स्वतन्त्रता को वह चबा लेना चाहता है
मनुष्यों को धर्म मे बदल देना चाहता है
लोगों के सिर से उनका मस्तिष्क ऐसे निकाल ले रहा है कि
ख़ुद उन्हीं को कोई ख़बर नहीं हो रही

राजा जिस भी रास्ते से गुजर रहा है
उधर की हवाओं में वही दुर्गन्ध फैल जा रही है
जो लाखों-लाख इनसानों की लाशों के एक साथ जलने से आती है

राजा ने एक ऐसे जानवर को गोद ले रखा है
जो अपने अपूजकों की हत्या
अपने स्पर्श भर से कर देने की क़ाबिलियत के लिए मशहूर हो रही है

इतना ही नहीं
मेरा क्रूर राजा
तुम जैसी बेकसूर प्रेमिकाओं को
क़ैद करके
किसी अनन्त अन्धेरे में फेंक भी देना चाहता है सदियों-सदियों के लिए
कि प्रेम कोई जघन्य अपराध हो

मेरी बातों से वह और भी उदास हो गई
उसका गला रुँधने लगा
और उसकी ख़ूबसूरत आँखे भरभरा गईं
वह समझ गई कि मैं न लौटने के लिए माफ़ी माँग रहा हूँ

जब मैं कह रहा हूँ –
मैं मिलूँगा तुमसे
मैंने उसे हिम्मत बँधाई
नहीं, वे मेरी हड्डियों में बारूद भर देंगें
निकाल लेंगें मेरी आँखें
कानों में उबलता तेल डालेंगें
मेरे नाख़ूनों में कील ठोंककर तुम्हारा नाम पूछेंगें
उस आखिरी घड़ी में मैं तुम्हें याद करूँगा
हृदय की असीम पवित्रता की दीवाल पर तुम्हारी मुस्कुराती तस्वीर देखकर
वे बार–बार पूछेंगें नाम तुम्हारा
और मैं मर जाऊँगा पर नहीं बताऊँगा

तब वे जान जाएँगें
यह अन्त नहीं है
मेरा जैसा दूसरा आएगा
तीसरा, चौथा, पाँचवा और न जाने कितने आएँगें
जो अपनी प्रेमिका के लिए
अपनी कल्पनाओं जितनी ख़ूबसूरत दुनिया चाहते हैं
वह अब फफक उठी और धम्म से मुझसे चिपक गई

मैंने मुस्कुराते हुए
अपनी कलम उठाई
किताबों को पहना
और कविताओं को पीठ पर लाद
क़स्बा छोड़ने के पहले कहा –
मैं नहीं भी लौटा तो मेरे जैसा दूसरा लौटेगा
तुम उसे मेरे जितना ही प्यार करना
वह उसका हक़दार होगा
यूँ तो
मैं मिलूँगा तुमसे

साथियो ! मेरा विदागीत यहीं ख़त्म होता है
इस पेड़ को शुक्रिया कहो और चलो उठो
हमें राजा को उसकी हवशी योजनाओं समेत दफ़्न कर देना है
और समय रहते लौटना भी तो है
अपनी–अपनी प्रेमिका की बाँहों में
यह इतना कठिन भी नहीं है।