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मोर का पंख / रमेश तैलंग
Kavita Kosh से
बीचों-बीच किताब के
मैंने रखा सँभाल के
एक मोर का पंख
सुनो जी, एक मोर का पंख।
जिसको एक सहेली ने
मुझे दिया था प्यार से।
एक मोर पंख
सुनो जी, एक मोर का पंख।
मखमल-सा कोमल-कोमल
लगे छुओ जब हाथ से।
एक मोर का पंख
सुनो जी, एक मोर का पंख।
पप्पी देती हूँ उसको
रोज सवेरे याद से।
एक मोर का पंख
सुनो जी, एक मोर का पंख।