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मोर गाँव मा संगी बसंत ह आगे / शकुंतला तरार
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मोर गाँव मा संगी बसंत ह आगे, मोर गाँव मा
छेना चीपा गोरसी छुटगे जुडजुड़ी ह सिरागे,मोर गाँव मा
पाना पिंवरा ला धरती दाई अपन कोरा मा झोंकय
नावा पाना लहर –लहर के खांधा मा मेछरावय
एखर छांव मा संगी मति हरियागे, मोर गाँव मा
धरती के देहें ला तोपय सरसों के हरियाली
परसा रिगबिग-रिगबिग सोहय आमा के मऊराली
कोयली के कुहू-कुहू मन ला भरमावय, मोर गाँव मा
फागुन मा मऊहा के फूल हा गोरी ला रिझावय
चीकन चाकन लुगरा पोलखा सज-धज के सिंगरावय
गवन पठौनी आगे मन मा कुलकाए, मोर गाँव मा