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मोर / सूर्यकुमार पांडेय

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आसमान में बादल घिरते,
जी भरकर इठलाता मोर ।

झूम-झूम अपनी मस्ती में,
सबको नाच दिखाता मोर ।

अपने पंखों को फैलाकर,
हमें बहुत ललचाता मोर ।

आओ, नाचें गाएँ हम भी,
सबको यह सिखलाता मोर l