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मोल राखय तखन जिनगी बनय क्यो त्यागी जखन / बाबा बैद्यनाथ झा

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मोल राखय तखन जिनगी बनय क्यो त्यागी जखन
राति तखने सरस होयत रातिमे जागी जखन

प्रेम निःस्वार्थे टिकै छै बात एकदम सत्य ई
क्यो मित्रतासँ दूर तखने मित्रसँ मांगी जखन

खाधिमे खसबय कुसंगति नित्य जँ सम्पर्क हो
धर्म बाँचत मित्र तहिखन पापसँ भागी जखन

छै विचारेकेर कहत्ता पूज्य नहि कहियो धनिक
बनब अह प्रियपात्र सभकेर सरलतम लागी जखन

लाख भटकू एम्हर-ओम्हर स्वर्ग छै घरमे सदति
अछि निरर्थक खुशी सभटा खुश ने वामांगी जखन

कलपि रहलै मातृभाषा नोर नहि सूखय एकर
जागृति तखने एतै, सभ बनब सहभागी जखन