मोसों 'नारायन' जिन रख दुराव,
जो तू कहेगी सोई मैं तेरो करूं उपाय
जासों रोग घटै मिटै सकल पीर॥
चाहै तू जोग करि भृकुटि मध्य ध्यान धरि,
चाहै नाम रूप मिथ्या जानि कै निहारि लै।
निर्गुन, निर्भय, निराकार ज्योति व्याप रही,
ऐसो तत्वज्ञान निज मन मैं तू धारि लैं॥