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मोहन, आउ तुम्हैं अन्हवाऊँ / सूरदास

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राग बिलावल


मोहन, आउ तुम्हैं अन्हवाऊँ ।
जमुना तैं जल भरि लै आऊँ, ततिहर तुरत चढ़ाऊँ ॥
केसरि कौ उबटनौ बनाऊँ, रचि-रचि मैल छुड़ाऊँ ।
सूर कहै कर नैकु जसोदा, कैसैहुँ पकरि न पाऊँ ॥


भावार्थ :-- `माता ! आओ , तुम्हें स्नान कराऊँ । श्रीयमुना जी से जल भरकर ले आऊँ और उसे गरम करने के लिये पात्र में डालकर तुरंत चूल्हे पर चढ़ा दूँ (जब तक जल गरम हो, तब तक मैं) केसर का उबटन बनाकर (उससे मल-मलकर (तुम्हारे शरीर का) मैल छुड़ा दूँ ।' सूरदास जी कहते हैं श्रीयशोदा जी (खीझकर) कहती हैं कि `इस चञ्चल को किसी भी प्रकार अपने हाथ से मैं पकड़ नहीं पाती ।'