मोहन-मुख-पंकज पै सरबस दीन्हौ वार री / हनुमानप्रसाद पोद्दार
मोहन-मुख-पंकज पै सरबस दीन्हौ वार री॥
ननद कह्यौ मो तें अति नेह सों ’भाभी ! सुन,
एक बात मेरी तू मन तैं लै मान री।
निरखि लै मोहन कौ मोहन मुखारबिंद,
एक बार नैन भरि, तजि कै सब गुमान री’॥
गरब भरी हौं हठीली नहीं मानी बात,
कह्यौ दुत्कार-’ब्रजनारी ! भूली भान री॥
नंद के नैक-से छोरा पै तजि दीन्ही,
सारी मरजादा लोक-लाज, कुल-कान री’॥
ननद सुनि बात मेरी हँसि कै दीन्हीं टार री।
मोहन-मुख-पंकज पै सरबस दीन्हौ वार री॥
ननद कौ डाँटि मानौ गढ़ जीति आई हौं,
गरब में भरी जाय लागी गृह-काम री।
मन नाहिं मानै, मनाय हारी बार-बार,
पल-पल में याद आवै मोहन प्रिय स्याम री॥
कृष्ण-कृष्ण कहें सब, मोहि अति प्यारौ लगै,
मन गुदगुदी होइ, बोलूँ कृष्ण-नाम री।
’हा कृष्ण! हा प्रिय कृष्ण’ मैं पुकारि उठी बरबस,
बही अश्रुधार, चौंकी सब बाम री॥
भई मैं अचेत, देखि मोहि हँस्यौ परिवार री।
मोहन-मुख-पंकज पै सरबस दीन्हौ वार री॥
’सारी ब्रजनारिन कौं बेभान कहति हुती,
भाभी ! तू भई बेभान क्यों अबार री ?’
’हा हा! बीर ! कहा कहौं, बिंध्यौ आय तीर हिएँ,
तासौं बही प्रेम-रस-सुधा-धार री॥
बेगि मो मिलाय प्रान-प्यारे मन-मोहन सौं,
जनम-जनम भूलूँ नहीं उपकार री।
जाकौ नाम हृदय बेधि, दै बहाय सुधा-धार,
ताकौ बस मिलन सब सार-कौ-सार री’॥
स्याम प्रगट भए तहाँ, बामा के प्यार री।
मोहन-मुख-पंकज पै सरबस दीन्हौ वार री॥