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मोहन के अति नैन नुकीले / ललित किशोरी

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मोहन के अति नैन नुकीले।
निकसे जात पार हियरा, के, निरखत निपट गँसीले॥

ना जानौं बेधन अनियन की, तीन लोक तें न्यारी।
ज्यों ज्यों छिदत मिठास हिये में, सुख लागत सुकुमारी॥

जबसों जमुना कूल बिलोक्यो, सब निसि नींद न आवै।
उठत मरोर बंक चितवनियाँ उर उतपात मचावै॥

'ललित किसोरी' आज मिलै, जहवाँ कुलकानि बिचारौं।
आग लगै यह लाज निगोडी, दृग भरि स्याम निहारौं॥