भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मोहब्बत की मोहब्बत तक ही जो दुनिया समझते हैं / जिगर मुरादाबादी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुमकिन<ref> संभव</ref> नहीं कि जज़्बा-ए-दिल<ref>मनो-भावना </ref> कारगर <ref>सफल </ref> न हो
ये और बात है तुम्हें अब तक ख़बर न हो

तौहीने-इश्क़ <ref>इश्क़ का अपमान </ref>देख न हो ऐ ‘ जिगर’ न हो
हो जाए दिल का ख़ून मगर आँख नम न हो

लाज़िम<ref>आवश्यक </ref> ख़ुदी<ref>आत्म-सम्मान का भाव </ref> का होश भी है बेख़ुदी<ref>आत्म-विसर्जन,आत्म-विस्मरण </ref> के साथ
किसकी उसे ख़बर जिसे अपनी ख़बर न हो

एहसाने-इश्क़ अस्ल में तौहीने-हुस्न<ref>सौंदर्य का अपमान </ref> है
हाज़िर है दीनो-दिल
 <ref> धर्म और दिल</ref> भी ज़रूरत अगर न हो

या तालिबे-दुआ<ref> दुआ करने का इच्छुक</ref> था मैं इक- एक से ‘जिगर’
या ख़ुद ये चाहता हूँ दुआ में असर न हो

शब्दार्थ
<references/>