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मोहमाया ममता नै मार, मन मजहब की माला रटले / प. रघुनाथ

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मोहमाया ममता नै मार, मन मजहब की माला रटले,
पल मे पावै परमपिता, पाखंड प्रेम से हटले ।। टेक ।।

अ आदि अनादि अनंत, अखंड अपार आवाज आपकी,
ओऊम अकार औतार, अलग करते आगाज आपकी,
क कर्म कराकर किस्म, किस्म करली अंदाज आपकी,
ख खट्टा खटरस खंग का, खटका खर उगपाज आपकी,
च चित्र छ छंटा छत्र जल्दी, जै करके जोर झपटले।।

ट का टट्टू टेम की टमटम, टिटकारी से चलता,
ठ का ठगिया ठाल्ली ठहरा, हरदम इसनै छलता,
ड का डमरू डूमक डूमक, सुन टहूँ टूण बदलता,
ढ का ढाल ढपाल बजै है, ना भय का ढोर सिमलता,
ण का नारायण भज, इस ठगिया से नटले।।

त की ताल तावली भाजै, तार तिरंग मे भरकै,
थ का थाम नहीं थमता, न्यू इच्छे-उच्छे सरकै,
द का दाता दया दाम दे, दाम सूब सन करकै,
ध का धर्म करे धर्म मिलज्या, धाम स्वर्ग का मरकै,
न का नेम निभा निर्भयी, ना नाक नर्क मे कटले।।

प पहले और फ का फैसला, कायदे का फल अच्छा,
ब मे बहुत बगी बहम, वाक् वक्त का सच्चा,
भ का भर्म भगत को भी रहा, भजन को करदे कच्चा,
गुरु मानसिंह भर्म मेट, रघुनाथ बावला बच्चा,
ल स मे स्वरूप शुभ राम के, सोच समझ सब सठले।।