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मोहरा / एम० के० मधु

 
तुम तो बस प्यादे थे
पांव तुम्हारा था, कंधे तुम्हारे थे
शह और मात की चाल हमारी थी

तुम तो बस जमूरे थे
कदम तुम्हारे थे, ताल तुम्हारे थे
डमरू हमारा था, रस्सी भी हमारी थी

तुम हाथी सी चलने लगे थे
मस्त चाल में चलते रहे थे
भूमंडल को रौंदते हुए
पर महावत की अंकुसी भी हमारी थी

तुम चांद की तरह चमकने लगे थे
और तारों पर इतराने लगे थे
धरती की गवाही ले लो
वह सूरज तो हमारा था
जिसकी रौशनी तुम पर तारी थी

तुम जब जब
जिस जिस रूप में आगे बढ़े
अपनी मंज़िल की ओर
अपने पैतरे से
मंज़िल की आंख में चमक बढ़ा दी
उसकी नब्ज़ में धड़कन बढ़ा दी
वह नश्तरे नज़र भी
तुम्हारी नहीं हमारी थी।