भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मोहें गहना ना गढ़ावा / जगदीश पीयूष

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मोहें गहना ना गढ़ावा।
मोहें टोनवा ना लगावा॥

मोहें झारा नाहीं लइके लोहबान मितवा।
मोहें मारा न नजरिया कै बान मितवा॥

हरिना अंखिया चोरावे।
चन्दा गलवा चोरावे॥

कोयल बोलिया चोराय छेड़ै तान मितवा।
मोहें मारा न नजरिया कै बान मितवा॥

सुआ नकिया चोरावे।
बिजुरी दंतवा चोरावे॥

मोरे सजना चोरावा थें परान मितवा।
मोहें मारा न नजरिया कै बान मितवा॥