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मोह भंग - 1 / संगीता गुप्ता



उसने कहा
जीवन - अभिशाप
इसे वरदान कर दो

वह होकर भी
कहीं नहीं,
उसके होने को
सार्थक कर दो

वह आया

बरसों - बरस वह
जान नहीं पायी
अब न जीवन था
न वह थी