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मौंह चलावे को बस हुनर आवे / सालिम शुजा अन्सारी
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मौंह चलावे को बस हुनर आवे....
सिर्फ तोकूँ बकर बकर आवे....
दै दियो है गलत पतो सब कूँ...
कोई आवे तो फिर किधर आवे....
थोबड़े सिगरे अजनबी लागें....
कोई अपुनों कहूँ नजर आवे....
बैठ ले कबहुँ साधु सन्तन में....
मन पे सायद कछू असर आवे....
पाँव घायल भये हैं मखमल सूँ...
अब तो काँटन भरी डगर आवे....
शीशमहलन में आके भी मोकूँ...
याद अपुनों वही खण्डर आवे..
बाको भूला तो मत कहो 'सालिम'....
भोर निकरे जो साँझ घर आवे....