मौक़ा / रघुवीर सहाय
नेता ने कहा कि सब भ्रष्ट हो गया है सो ठीक कहा
हिम्मत की
पर हिम्मत नहीं थी लोग यह पहले ही जान चुके थे
अब यह केवल स्वीकार था कि मैं पिछड़ गया हूँ
समाज को समझने में
नेता कुछ नहीं बता रहा
जो जनता अभी नहीं देख रही
और यह तो बिल्कुल नहीं कह रहा कि यह जो पतन है
वह किस अर्थनीति का नतीजा है
वह केवल उसी अर्थनीति में विरोध की बात करता है
जिसका मतलब है अभी जो शासक है वैसा ही बनेगा
सिर्फ भ्रष्ट नहीं होगा, ऐसा कहता है
इस बार नेता का पतन राजनीति के द्वारा रोका नहीं जा सकता
जब तक कि राजनीति बदली नहीं जाती
एक बड़ी विपदा के छोटे-छोटे घेरों में कौन अच्छा कौन बुरा
उसकी किसी पहचान का आखिर क्या मतलब ?
तब नेता का यह कथन कि देखो यह वर्तमान
लोगों को उकसा रहा है कि वे अतीत भूल जाएँ
और भविष्य के लिए आशंका ग्रस्त हों
यदि शासक अपने कामों से पराजय को प्राप्त हो
तो वह जनता की जीत नहीं है : वह एक और पतन के लिए
एक और भ्रष्टाचार में लूट के लिए
किसी और नेता को मौक़ा देने की बात है
लोग जानते हैं सब मगर जान लेना सब
राजनीति छोड़ ही देना है पतन के सहारे
क्योंकि जनता ने सब जाना, केवल विकल्प नहीं जाना
कोई विकल्प नहीं हो सकता उस समाज में जहाँ
लोग सब जानते हैं केवल उसी का अस्वीकार होता है
कोई तो बताए वह जो अभी लोगों को पता नहीं
लोगों को याद कोई यह दिलाए कि जो बीता
वह उनका किया था क्योंकि वे कुछ नहीं करते थे ।