भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मौका देंय जबै भगवान / बोली बानी / जगदीश पीयूष
Kavita Kosh से
मौका देंय जबै भगवान
एमले बनै चहै परधान
सबका बोलै अगड़म बगड़म
सबका दिहे रहै सरसेंट
रामै चिरई रामै खेत
खाय ल्या चिरई भरि भरि पेट
जनता की आज्ञा अनुरूप
लायेन बड़ी योजना खूब
ठेका भये लगाये बोली
खोले रहे कमीशन रेट
रामै चिरई रामै खेत
करा चाकरी करा न काम
दास मलूका कै लै नाम
भरी रहै दौलत से कोठरी
भरी रहै नोटे से टेंट
रामै चिरई रामै खेत
खाय ल्या चिरई भरि भरि पेट