भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मौज़ूदगी / आस्तीक वाजपेयी
Kavita Kosh से
जब चन्द्रमा की आहट
आसमान में होती,
चिड़ियों के शोर और
पत्तियों की सरसराहट के बीच,
हम तालाब के किनारे
अब फिर टहल रहे हैं ।
अब पता चला,
इस समय की मौज़ूदगी
के लिए हमारी नामौजूदगी
ज़रूरी थी ।